पृथ्वी से लाखो किलोमीटर दूर मंगल ग्रह से एक good news आई है अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) मंगल ग्रह पर एक नया इतिहास रचा है। पहली बार किसी दूसरे ग्रह के आकाश में एक छोटे आकार का (रोबोटिक हेलिकॉप्टर) उड़ा कर दिखाया है। जो इंसान द्वारा बनाए गए है।
इस काम कि तुलना मानव इतिहास की फर्स्ट फ्लाइट से की जा रही है। क्योंकि दूसरे ग्रह पर इंसान द्वारा बनाए गए हेलीकॉप्टर की पहली उड़ाना है। आपने किताबों में पढ़ा होगा कि वर्ष 1903 में पहली बार एयरप्लेन को आकाश मे उड़ाया गया था। और वह उड़ान भी सिर्फ 12 सेकंड की थी। तब इस आधुनिक फ्लाइट को हवाई सफर के लिए नया रास्ता तैयार किया गया था। आज मंगल ग्रह पर संभावना है। उड़ाना भरने कि
इस (रोबोटिक हेलीकॉप्टर) ने भी कुछ ऐसा ही किया है नासा ने 6 साल की कड़ी मेहनत की है और दर्जनों बार असफल होने के बाद भी नासा के वैज्ञानिक हार मानने के लिए तैयार नहीं हुए और नासा की कोशिशों ने आज सफलता का नया रूप लिया है।
18 फरवरी को एक रोवर कि सहायता मंगल ग्रह की सतह पर एक रोबोटिक हेलिकॉप्टर उतरा था।
तभी हेलीकॉप्टर इसी रोवर में मौजूद था।
यह रोबोटिक हेलीकॉप्टर नहीं बल्कि एक रोबोट है इसकी खास बात है कि इसे विशेष तौर पर दूसरे ग्रह पर उड़ने के लिए ही तैयार किया गया था। हेलीकॉप्टर को डिजाइन करने वाले नासा के वैज्ञानिक डॉ जे बालाराम भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक है, जो भारत के राज्य से आते हैं और नासा के चीफ इंजीनियर की भी भूमिका निभा रहे हैं।
इसकी खासियत है, कि सौर ऊर्जा से चलने वाले इस (रोबोटिक हेलीकॉप्टर) को लाखों किलोमीटर दूर अमेरिका के किसी भी सहर से कंट्रोल किया जा सकता है। हालांकि वैज्ञानिकों को पहले यह डर था। कि कहीं (रोबोटिक हेलीकॉप्टर) मंगल ग्रह की खबर सतह पर फैल ना हो जाये।
आर्यभट्ट उपग्रह कि अंतरिक्ष यात्रा क्या आपको मालूम है।
क्या आपको अंतरिक्ष में पहुंचने वाले सबसे पहले भारतीय (satelite) आर्यभट्ट उपग्रह को आपने सुना होगा। वो कैसे अंतरिक्ष मे गए जिस सेटेलाइट से आर्यभट्ट को भेजा गया था। यह सेटेलाइट 19 अप्रैल 1975 को रूस द्वारा लांच किया गया था। भारत की पहली सेटेलाइट के लॉन्च होने की कहानी बहुत प्रचलित है।
डॉक्टर विक्रम साराभाई के निर्देशक में 20 युवा वैज्ञानिकों ने देश का पहला सेटेलाइट बनाना शुरू किया था उस समय हमारे देश में संसाधनों की बहुत कमी थी ना तो वैज्ञानिकों के पास बड़े-बड़े दफ्तर थे बैठने के लिए और ना ही संसाधन थे। कोई जगह नहीं थी बैठने की और ना ही सेटेलाइट बनाने के लिए उनके पास कोई आधुनिक लैब थी। उस समय अंतरिक्ष से जुड़े छोटे प्रयोग करने के लिए भी भारत दूसरे देशों पर निर्भर रहता था। आप इस तरह से समझिये कि
भारत का पहला सेटेलाइट बनाने का काम जोरों शोरो से चल रहा था। उस वक्त एकदम भीषण गर्मी में हमारे देश के वैज्ञानिक पसीने लतपट होकर लगातार मेहनत करके बनाया था।
हमारे देश के वैज्ञानिक यह सेटेलाइट तो बना रहे थे लेकिन तब हमारा देश इसे लॉन्च नहीं कर सकता था। इसलिए क्योंकि हमारे पास वह टेक्नोलॉजी ही नही थी। और तब उस समय रूस ही हमारा बहुत करीबी और भरोसेमंद मित्र था। तब भारत ने रूस को एक प्रस्ताव दिया था। और तब रुस ने हमारा प्रस्ताव स्वीकार किया और उसने कहा कि अगर आपने इस सेटेलाइट को बना लिया तो हम इसे लंच कर देंगे।
रूस उस समय भारत कि सेटेलाइट बनाने मे मदत भी करता सकता था। क्योंकि उस समय भारत पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगा हुआ था। लेकिन हमारे देश के वैज्ञानिकों नही मानी वह लगातार इस सेटेलाइट को बनाने मे लगे थे।
उस समय सेटेलाइट को बनाने कितना बजट रखा गया था।
उस समय देश की प्रधानमंत्री इन्द्र गाँधी थी उन्होंने इस मिशन के लिए लगभग 3 करोड़ रुपये दिये थे। भारत के पहले सेटेलाइट को बनाने के लिए 3 करोड रुपए का बजट रखा गया था। क्योंकि कई सालों तक गुलामी के बाद भारत के लिए अंतरिक्ष विज्ञान में कदम रखना किसी बड़े चमत्कार से कम नहीं था।
सेटेलाइट के नाम क्या था। इसका नामांकन किसने किया।
उस समय इस सेटेलाइट का नामकरण इंद्र गांधी ने किया था। और उसका नाम भारत के महान खगोलशास्त्री के नाम पर रखा गया था।
खगोलशास्त्री आर्यभट्ट के इस दुनिया पर क्या योगदान है।
खगोलशास्त्री ने ही बताया था कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है।
और उन्होंने ही शून्य और दशमलव की खोज की थी। जिसके बाद से आधुनिक गणित का विकास हुआ इस कार्य को दिखाने का हमारा मकसद सिर्फ यह बताना है कि छोटे प्रयास करके ही बड़ी सीढ़ियों का निर्माण आप कर सकते है।
इसलिए आर्यभट्ट सेटेलाइट को सिर्फ 3 करोड़ के बजट में बनाया गया था। और तब से लेकर अब तक हमारी space agency (ISRO) का पुरा नाम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन है। और इनका मुख्यालय बैगलूर शहर मे स्थित है। ISRO कम बजट में शानदार काम करती आ रही है। और यही काम दुनिया की दूसरी (एजेंसियां) हजारों करोड़ रुपए खर्च करके करती हैं।