1962 की चुक नेहरू जी को बहुत माहगी पड़ी थी। जिन्होंने वक़्त रहते चीन को समझा नही.

• जैसा कि आपको  होगा कि 1962 के युद्ध की हार भारत की हार नहीं बल्कि उस वक्त के राजनीतिक नेतृत्व की कि हार थी जो चीन के खतरे से ज्यादा उन्हे इस बात की चिंता थी कि सेना के अधिकारियों के सामने कहीं उनका दबदबा कम ना हो जाए। तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल थिमैया से जुड़ी कुछ बातें आपको बतायेगे। 

• जिन्होंने तत्कालीन रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मैनन के व्यवहार से हताश होकर अपना इस्तीफा तक दे दिया था वीके कृष्ण मैनन किसी की सुनते नहीं थे वीके कृष्ण मैनन के बारे मे ऐसा कहा जाता है की तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की कोई बात काटते नहीं थे आज हम आपको बताएंगे कि जनरल थिमैया की बातें नेहरू और वीके कृष्ण मैनन उस समय मान लेते तो युद्ध का नतीजा कुछ और होता और यह भी हो सकता था की चीन हम पर हमला करने की हिम्मत करता ही नही। 


.क्योंकि हमारी जबाज भारतीय सेना त्यार रहती जो डट कर चीन का मुकाबला करती यह एक बहुत बड़ा टर्निंग प्वाइंट था जिसके बारे में आज पूरे देश को पता होना चाहिए। 

• चीन ने 1959 मे तिब्बत को अपना अभिन्न अंग घोषित कर चुका था और उसने तिब्बत से होते हुए भारतीय सीमा तक हाइवे और सड़कें भी बना ली थी। जो भारत की जमीन पर थी चीन के ईरादे बिल्कुल साफ साफ दिखाई दे रहे थे लेकिन चीन के खतरे को देखने की जगह पर भारत में हिंदी चीनी भाई-भाई के नारे उस समय लग रहे थे भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू हिंदी चीनी भाई भाई के नशे में चूर थे उन्हें सिर्फ हिंदी चीनी भाई भाई के अलावा और कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। लेकिन उसके बाद जो हुआ जिससे नेहरू जी का ब्रम चूर चूर हो गया।                                                                  

• भारत के इतिहास में पहला अविश्वास प्रस्ताव जे बी कृपलानी द्वारा वर्ष 1963 में तब की जवाहरलाल नेहरू सरकार के खिलाफ संसद मे पेश किये गए। 

• भारत चीन युद्ध में चीन से मिली हार के बाद देश में जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ काफी नाराजगी थी उस समय सेना के कई बड़े अधिकारियों और कमांडोज ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और नेहरू के सबसे नजदीकी उस समय के रक्षा मंत्री वीककृष्णा मेनन को भी कैबिनेट से इस्तीफा देना पड़ा था। भारतीय सेना को बिना किसी तैयारी युध्द के मैदान मे भेजने के लिए जवाहरलाल नेहरू की भी कड़ी आलोचना हुई थी नेहरू ने धोके बाज चीन पर भरोसा क्यों किया की चीन हमपर हमला नही करेगा। 

• क्योंकि इसलिए कि हिंदी चीनी भाई भाई क्या भर्म था नेहरु जी को और इसके बाद 1963 में लोकसभा में नेहरू के खिलाफ देश का पहला अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था चीन के मुद्दे पर युद्ध में हार की वजह से कांग्रेस पार्टी को कई उपचुनाव में हार का सामना भी करना पड़ा था इसका मतलब राष्ट्रीय स्तर पर लोगों में शर्मिंदगी महसूस हो रही थी नेहरू जी के जो करीबी थे डिफेंस मिनिस्टर (श्री कृष्ण मैनन ) 
  

• उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ा था, और इसके बाद जवाहरलाल नेहरू का जो कद उससे पहले बहुत ऊंचा हुआ करता था पहली बार हुआ जब लोगों ने जवाहरलाल नेहरू की खुलकर खुलेआम आलोचना करनी शुरू कर दी और उनका राजनीतिक कद काफी कम हो गया था। 

• क्योंकि लोगों ने मान लिया कि नेहरू जी चीन को समझ नहीं पाए। आज एक और कांग्रेस नेता के बारे मे बात करेंगे जो अपने आप को बहुत समझदार मानते है। आज राहुल गांधी को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि 1962 के युद्ध से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को कई नेताओं ने चेतावनी दी थी कि उनकी नीतियां देश के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं लेकिन नेहरू ने इन सभी चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया और इसके बाद 1962 में भारत को चीन से युद्ध मे बिना किसी त्यारी के युध्द के मैदान मे भेजना उनकी बहुत बड़ी भूल थी और हमारे देश में 43 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर चीन ने कब्जा कर लिया। 43 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन नेहरू जी ने गवा दी और जमीन पर चीन ने कब्जा कर लिया जिसे आज LAC के नाम से जाना जाता है। 


• जिस समय नेहरू पंचशील समझौते और हिंदी चीनी भाई-भाई का नारा बुलंद कर रहे थे उस समय कई नेताओं ने उन्हें चीन को लेकर आगाह किया था। 

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने नेहरू जी को चीन के मुद्दे पर क्या कहा था।                                                          

फिर राज्यसभा में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने चीन की आलोचना की थी और नेहरू जी को आगाह किया था जिसकी वजह से चीन भारत को घेरेगा 26 अगस्त को राज्यसभा में डॉक्टर अंबेडकर ने कहा था कि भारत को पूरी तरह से घेर लिया गया है लेकिन नेहरू ने चीन का बॉर्डर भारत के करीब लाने में मदद की है। अंबेडकर उन्होंने आगे कहा कि भारत को खतरा नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं कि आगे भी खतरा नहीं होगा। 

• क्योंकि जिस की आदत आक्रमण की होती है वह कभी अपनी आदत को सुधारेगा नहीं आज आपके लिए लेकर आया हूं अंबेडकर ने क्या कहा था।26 अगस्त 1954 की यह बात है और इसके ठीक 8 साल के बाद चीन ने भारत पर हमला बोल दिया था अंबेडकर के अलावा पंडित दीनदयाल उपाध्याय। राम मनोहर लोहिया और श्री राजगोपालाचार्या ने भी चीन को लेकर नेहरू की नीतियों पर चिंता जताई थी लेकिन उस समय इन चेतावनी को नजरअंदाज करके नेहरू अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन का समर्थन कर रहे थे। 


• उन्होंने अपनी चीन यात्रा के दौरान तिब्बत पर चीन के गैरकानूनी कब्जे को भी नही समझते थे जब तक नेहरू के आँखो से पट्टी खुलती तब तक बहुत देर हो चुकी थी चीन भारत की जमीन हड़प चुका था। इससे राहुल गांधी को कोई दुख नहीं है नेहरू की नीतियां कितने गलत थी अब मैं उन्हें उनकी यात्रा से लौटने के बाद उन्होंने देश को यह जताया की चीन में कैसे उनका जबरदस्त स्वागत हुआ। 


• उन्हें जितना सम्मान भारत में मिलता है उतना ही सम्मान चीन मे मिलता है नेहरू ने बताया कि चीन के एक शहर में 1 लाख लोगों ने उनका स्वागत किया था और यह लोग उनके पहुंचते ही बहुत उत्साहित थे।और वैसे ही अनुभूति शायद नेहरू को भी हो रही थी। लेकिन वह चीन की मंशा ओं को समझ नही पाए। वह बड़ी गलतियां क्या थी की आज कांग्रेस पार्टी के लोगों को तो समझनी चाहिए देश को भी समझना चाहिए। 

• नेहरू जी शातिर चीनी नेताओं को समझ नहीं पाए चीन को लेकर नेहरू की बड़ी गलतियां क्या थी आज कांग्रेस पार्टी के लोगों को तो समझनी चाहिए देश को भी समझना चाहिए।नेहरू सरकार बौद्ध धर्म की बात तिब्बत में चीन के गैरकानूनी कब्जे का विरोध क्यों नहीं किये। 

• तो दोस्तो ये है 1962 की कुछ अनसुनी दस्तान.   । जय हिन्द । 
Adbhud knowledge

Mai harsh sahu

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने